Thursday, February 25, 2016

Free Speech और इंडिया

अपनी अपनी दिलचस्पी होती है। तो I am like Modi. वो कहते हैं विकास, उसी चीज को मैं कहता हुँ economic growth ---- बात एक ही है। तो मेरी उसमें काफी रूचि है। सामाजिक मुद्दे पर भी रूचि है लेकिन मुख्य रूप से आर्थिक मुद्दा पर है।

मीडिया थोड़ा अपरिपक्व है। मैं ईमानदारीपूर्वक एक बात बता दुं। जैसे कि कोई एक घटना हुइ मानो। जैसे की एक आया था दादरी। फिर एक सुसाइड का आया था। तो मीडिया एक घटना पर लटक जाती है हप्तो। मेरे को लगता है वैसे ढेर घटनाएँ होते होंगे। सिर्फ न्यूज़ में नहीं आता। नहीं तो उतना बड़ा देश है और सिर्फ एक वैसा गलत घटना घटा हो तो वो तो बहुत ही ख़ुशी की बात होगी। कि इतना कम। लेकिन मेरे को लगता है मीडिया थोड़ा अपरिपक्व है। एक ही घटना को दो चार हप्ते दौड़ा दो तो फील्ड वर्क ज्यादा नहीं करना पड़ा। रिसोर्स भी कम होंगे।

अभी बात आया है फ्री स्पीच का। तो फ्री स्पीच का मतलब क्या? आप बोल सकते हैं। आप ने कुछ बोला उसके आधार पर अरेस्ट नहीं हो सकते। लेकिन फ्री स्पीच का मतलब ये नहीं कि आप हिंसा का आह्वान कर सकते हैं। आतंकवाद को दुनिया के प्रत्येक लोकतंत्र में गैर कानूनी। आप कहेंगे ये उडा दो वो उड़ा दो इसे मारो उसे मारो तो वो तो फ्री स्पीच नहीं हुवा। पकडे जाओगे।

फ्री स्पीच यानि कि शांति के परिधि में रह के। हिंसा गैर कानुनी होता है।

दूसरा फ्री स्पीच का मतलब ये नहीं कि मेरे को जो मन में आए बोला फ्री स्पीच है तो फिर मेरे को कम्पनि ने नौकरी से क्यों निकाला? किसी कंपनी के अपने नियम होंगे कुछ दस्तुर होंगे। कंपनी बोले के आधार पर अरेस्ट नहीं करवा सकती। लेकिन नौकरी से निकाले जा सकते हो।

फ्री स्पीच का मतलब ये नहीं आप किसी के घर गए और गाली गलौज किए। और घर से निकाल दिया तो आप ने कहा फ्री स्पीच। घर वालों का अधिकार है निकाल दिया। उसी तरह एक संस्कृति की बात होती है। राजनीतिक संस्कृति। एक सभ्य परिधि के अंतर्गत रह के विचार आदान प्रदान करेंगे --- सभी पार्टीया मिल कर कुछ वैसी राजनीतिक संस्कृति का निर्माण कर सकते हैं। वो भी फ्री स्पीच ही हुवा।

फ्री स्पीच का वास्तविक मकसद ये होता है कि समाज में वैचारिक विकास होने के लिए। किसी ने कह दिया पृथ्वी गोल है तो उसको फांसी पर मत लटकाओ। नहीं तो विज्ञानं का विकास तो होगा नहीं। फ्री स्पीच के बगैर साइंस और टेक्नोलॉजी संभव नहीं।

मेरा अनुभव रहा है एक आम अमेरिकी के तुलना में एक आम भारतीय बहुत ज्यादा opinionated होते हैं। जैसे कि सब्जी किन्ने जाते हैं तो भारतीय वहीं पर मोल मोल्है शुरू कर देता है। जब कि अमरिकी का व्यवहार ऐसा होता है कि लगता है ये नार्थ कोरिया में रह रहे हैं। प्राइस टैग देख के पैसे दे देते हैं।

आर्य भट्ट ने शून्य का अविष्कार किया। वो बगैर फ्री स्पीच के संभव नहीं हुवा होगा। मैं ये नहीं कहता कि जितने अच्छे चीज हैं सब भारत के इतिहास में हैं। नहीं। लेकिन जो अच्छे हैं वो अच्छे तो हैं।





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